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आरे कॉलोनी में पेड़ काटने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, हिरासत में लिए गए सभी लोगों को छोड़ने का आदेश

श्यामजी मिश्रा  संपादक – स्टार मीडिया न्यूज

इस संसार में हर मनुष्य के जीवन के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित है। उनमें एक यह है कि अपने कुल या परिवार की रक्षा के लिए किसी एक का त्याग करना पड़े तो कर दें, पूरे गांव की रक्षा के लिए अपने स्नेहीजनों का त्याग करना पड़े तो कर दें। पूरे देश के लिए गांव छोड़ना पड़े तो नि:संकोच छोड़ दें और यदि अपनी अन्तरात्मा की सच्चाई की रक्षा के लिए सर्वस्व भी छोड़ना पड़े तो छोड़ दें। देश सेवा का यह उपदेश देने वाले तो इस संसार से चले गए पर उपदेश छोड़ गए। परंतु देश सेवा से ओत-प्रोत आज के नेता व शासन-प्रशासन इस उपदेश का पालन तो छोड़िए, करते हैं इसका उल्टा। आज-कल के नेताओं व शासन-प्रशासन में संवेदनशीलता व सिद्धान्त बचा ही नहीं है। आज की राजनीति में तो अक्सर देखा गया है कि चोर से बोलो चोरी करो और साहु से बोलो जागते रहो।

एक तरफ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है वहीं दूसरी तरफ गोरेगांव के आरे कॉलोनी में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। आपको बता दें कि आरे कॉलोनी में मेट्रो कारशेड का निर्माण होने वाला है, जिसके लिए सैकड़ों पेड़ों की कटाई करनी पड़ेगी। जिसको लेकर स्थानीय लोग व अन्य सामाजिक संस्थाएं विरोध कर रही हैं। यह मामला मुंबई हाईकोर्ट में चला और हाई कोर्ट ने आरे कॉलोनी को जंगल (वन) मानने से इंकार कर दिया और उल्टा पर्यावरण प्रेमियों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। जैसे ही मुंबई हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया और उसी दिन रात के अंधेरे में शासन-प्रशासन आरे कालोनी में पेड़ काटने पहुंच गए, जिसका विरोध स्थानीय लोगों ने शुरू कर दिया। दूसरे दिन तो आरे कॉलोनी में ऐसे हालात बन गए जैसे कश्मीर में धारा ३७० हटाने के बाद हुआ था। वैसे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के आरे कालोनी में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। अब इस मामले की सुनवाई २१ अक्टूबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार का पक्ष रख रहे वकील ने कहा कि अब सरकार पेड़ नहीं काटेगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा है कि अब तक कितने पेड़ काटे गए हैं उसका रिपोर्ट कोर्ट को दें। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि आरे में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है उन्हें तुरंत रिहा किया जाये। और कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भी इस केस में पार्टी के तौर पर शामिल किया जाये। अब हम तो यही कहेंगे कि आरे पर आरी चली, हुआ बहुत बऊआल । चेता सुको चलाई कुल्हाड़ी, घायल महाराष्ट्र सरकार।

खैर छोड़िए अब तो ऐसे शासन-प्रशासन की संवेदनशीलता और सिद्धान्त की अपेक्षा करना मूर्खता है। बड़े-बड़े नेताओं और कवियों की संवेदनशीलता हमने देखी है। पर्यावरण, प्रदूषण, जल संरक्षण तथा नारी शोषण पर बड़ी-बड़ी बाते करते हैं और कवि लोग बड़ी-बड़ी कविताएं रच देते हैं। लेकिन क्या आज के जमाने में लोग संवेदनशील रहते हैं ? ऐसे बहुत ही कम लोग होंगे जो संवेदनशील रहते हैं। वैसे आज के जमाने में देखा जाये तो आदमी से ज्यादा संवेदनशील तो कुत्ते, बिल्ली और शेर होते हैं। कुत्ता तो प्रतिदिन अपने मालिक को कितना लाड़ करता है यह तो आप सब जानते हैं। और जहां तक रिश्तों को निभाने वाली बात है आदमी उन्हीं रिश्तों को निभाता है जिनसे उन्हें लाभ दिखता है। अपने देश में बेईमानी और भ्रष्ट्राचार का सबसे बड़ा कारण यही है कि सत्ता के प्रति अतिरिक्त मोह। देश में भयानक भ्रष्ट्राचार या रिश्ववतखोरी बाजारीकरण हैं, हम सब इसके खिलाफ हैं, मगर करते सब यही हैं, क्योंकि यह धन कमाने या करोड़पति होने का शार्टकट रास्ता है।

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