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भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं का कारण सुरक्षा का दोहरा मापदंड। 

भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं का कारण सुरक्षा का दोहरा मापदंड।

दिनेश चंद्र उपाध्याय

मुंबई। आप यह जानकर आश्चर्य चकित हो जायेंगे कि हमारे देश में सड़क दुर्घटना में मरने वालों की संख्या औसतन दो लाख प्रति वर्ष है । आप को यह भी जानकर हैरानी होगी कि आज तक सभी युद्धों में मारे गये सैनिकों और असैनिक नागरिकों की कुल संख्या सड़क दुर्घटना में जान गँवाने वाले लोगों से बहुत कम है । इन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु में भारत का योगदान सर्वाधिक है ।भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के कई कारण हैं। जिनमें प्रमुख हैं मार्गों की जर्जर हालत और मार्ग निर्माण के मापदण्डों का भ्रष्टाचार के कारण पालन नहीं होना। बार – बार सड़कों की मरम्मत होते रहना भी दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है। जबकि विकसित देशों जैसे इटली, जापान, इंग्लैंड और अमरीका में आठ- नौ दशक पहले बनी सड़कें भी आज तक जस की तस हैं। भारतीय परिवहन विभाग के निर्धारित नियमों का कड़ाई से पालन कराने में निष्क्रियता एवं भ्रष्टाचार भी सड़क दुर्घटनाओं में बड़ी भूमिका निभाता है। इसके अलावा वाहन निर्माताओं द्वारा सुरक्षा के मापदण्डों का भी गम्भीरता से पालन नहीं किया जाता । पिछले तीन दशकों से विश्व के प्रसिद्ध वाहन निर्माताओं की बढ़ती भीड़ विकसित देशों के सुरक्षा मापदण्डों को किन्हीं कारणों से भारत में कमतर करके लागू करने का प्रयास करने में गुरेज़ नहीं करती । इनका मुख्य उद्देश्य केवल लाभ अर्जित करना ही होता है। वे भी भारतीय वाहन निर्माताओं की तरह “चलता है” के सिद्धांत पर चलते हैं। विदेशी निर्माताओं के वाहनों की सुरक्षा व्यवस्थाओं को प्रमाणित करनेवाली भारतीय टेस्टिंग एजेंसियां भी सुरक्षा मापदण्डों को उतनी गम्भीरता से नहीं लेतीं, जैसा कि विश्वस्तरीय संस्थान करते हैं ।
दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण वाहनयात्रियों द्वारा सुरक्षा व्यवस्थाओं को महत्व न देना भी है। भारत में ज्यादातर यात्री सीट बेल्ट केवल चालान के भय से लगाते हैं (बहुत कम लोग जानते हैं कि सीट बेल्ट प्राथमिक सुरक्षा है और एयरबैग माध्यमिक सुरक्षा है)। कुछ लोग पीछे लगी सीट बेल्ट को अनावश्यक समझते हैं। जबकि पिछली सीट पर बैठे यात्री भयंकर दुर्घटना के समय बिना सीट बेल्ट लगाए किसी भी हालत में जीवित नहीं रह सकते। क्योंकि दुर्घटना होते ही वे गेंद की तरह उछल कर आगे की सीट और विंडशील्ड ग्लास से वेग से टकरा सकते हैं। जिसके कारण उनका बचना असम्भव हो जाता है। जबकि आगे वाले यात्री सीट बेल्ट लगाने के कारण अपनी सीट पर रहते हैं और उनके शरीर का ऊपरी भाग एयरबैग खुल जाने के कारण स्थिर रह जाता हैं और मरने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। ड्राइवर को सही ट्रेनिंग का अभाव, ट्रैफ़िक नियमों की अनदेखी, ग़लत लेन में ड्राइविंग करना, रोड रेज इत्यादि भी दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं। यहाँ हम विकसित देशों का उदाहरण देना चाहते हैं । वहाँ यदि सड़क पर रुकने का साइन है तो सभी अवश्य रुकते हैं और अच्छी तरह दाएं – बाएं देखने के बाद ही आगे बढ़ते हैं, भले ही सड़क कितनी भी खाली क्यों न हो । इसी तरह विदेशों में बिना सिग्नल वाली क्रासिंग के लिए भी निर्धारित नियम होते हैं । ऐसे चौराहे पर आने वाले सभी वाहन रुकते हैं और पुन: उसी क्रम में चौराहे से निकलते भी हैं । इसके अलावा नक़ली स्पेयर पार्ट्स भी घातक दुर्घटना के कारण बनते हैं, जिनका डाटा कहीं उपलब्ध नहीं है। यह भी एक गम्भीर मामला है ।
वाहन का समुचित रखरखाव भी सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है । एयरबैग, सीट बेल्ट, स्टीयरिंग ह्वील, एयरबैग ईसीयू, वायरिंग हार्नेस की नियमित चेकिंग और सर्विसिंग सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । यहाँ तक कि हेडरेस्ट जिसे केवल आराम का एक साधन समझा जाता है, वह भी ड्राइवर और सहयात्री की दुर्घटना के समय सीट बेल्ट और एयरबैग की भाँति ही मददगार साबित होता है। हेडरेस्ट को सदैव सही पोज़ीशन में ही रखा जाना चाहिए । इसके अतिरिक्त हेडरेस्ट जिसे आवश्यकता पड़ने पर सीट से अलग किया जा सकता है, उस समय बहुत उपयोगी है जब वाहन अत्यधिक बारिश और पानी में डूबा हो और यात्री का बाहर निकलना असम्भव हो । याद करें जुलाई 2005 में अप्रत्याशित वर्षा के कारण बहुत से यात्री वाहन से बाहर नहीं निकल सके और उनकी मृत्यु हो गई थी । ऐसे आपातकाल में हेडरेस्ट के नुकीले भाग से विंडशील्ड ग्लास को तोड़कर जान बचाई जा सकती है । वाहन में कभी लूज़ सामान नहीं रखा जाना चाहिए। क्योंकि ये दुर्घटना के समय मिसाइल जैसे घातक हो जाते हैं । ड्राइवर को भी ध्यान रखना चाहिए कि स्टीयरिंग पर हाथ के अतिरिक्त उनका शरीर स्टीयरिंग से कम से कम 300 मिलीमीटर की दूरी पर हो। अन्यथा सीट बेल्ट और एयरबैग भी प्रभावी नहीं हो पाते और ड्राइवर का संकट बढ़ जाता है । यात्रा सुरक्षित हो सके, इसके लिए जरूरी है कि ड्राइवर ट्रेनिंग सरकार की देखरेख में हो और कठिन परीक्षा पास करने के बाद ही ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाय । ट्रैफ़िक नियमों का पालन बिना किसी भेदभाव के हो और दोषियों को कठोर दण्ड दिया जाय, इसमें आवश्यक नियमों के उल्लंघन पर आर्थिक दण्ड के साथ – साथ कारावास का भी प्रावधान हो । विदेशी वाहन निर्माताओं के सभी मानदण्डों का पालन करने के लिए वही नियम रखे जाने चाहिए, जो विकसित देशों में लागू हैं। भारतीय परिवहन टेस्टिंग एजेंसियों का नियमित आडिट किया जाना चाहिए, और उनके द्वारा प्रमाणित वाहनों की पांच फीसद संख्या किसी अन्य प्रमाणित संस्था से पुनः प्रमाणित कराई जानी चाहिए। इससे विदेशी वाहन निर्माताओं की गुणवत्ता बनी रहेगी । लेकिन इन सारी बातों के अतिरिक्त सुरक्षा का प्रथम दारोमदार वाहन में यात्रा करने वालों के हाथ में है। सरकार एवं वाहन निर्माता केवल उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं ।

(लेखक कई प्रमुख आटोमोबाइल कंपनियों में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं)

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