उजाले का स्थान दोयम है…
अँधेरे में भी….कई अच्छाइयाँ हैं
दूसरों को तो छोड़िए,
आप खुद को भी नहीं देख सकते,
परछाई भी साथ छोड़ जाती है,
अँधेरे में आप कर सकते हैं
मनभर अँधेरगर्दी…..
आपके चेहरे पर,
मुस्कुराहट है या गम,
अँधेरे में कोई जान नहीं सकता
मतलब साफ है…जमाने भर की..
आलोचनाओं का मुँह बंद….
अँधेरे में निद्रा या जागरण
आप की मर्ज़ी…..
आपके मुँह पर कुछ सुनाने वाला
या कालिख पोतने वाला भी नहीं
बुरे कर्म भी छुपे ही रहेंगे और
यदि खुल भी गए तो…..!
कोई पूछने वाला नहीं….
आप की काली करतूतें,
अँधेरे की तरह अदृश्य और
छुपी हुई रहती हैं…..
अँधेरे में आप कितना नंगा हैं
या कितना पर्दानशी…..!
भला कौन बता सकता है….
बताइए …!..सही कहा न मैंने….
कई अच्छाइयाँ हैं….अँधेरे में…
फिर भी…. इस अँधेरे से…..!
सब को डर लगता है
सूर्य रश्मियों से,
जल्द से जल्द मिलने को
सबका मन करता है
अँधेरे से पार पाने को…
एक छोटी सी दिया जलाने का,
और उसके जलते रहने का,
हर कोई जतन करता है….
सच कहूँ तो मित्रों….!
अँधेरा एक अनसुलझी पहेली है
शायद इसीलिए कोई भी इसको
नहीं बनाता अपनी सहेली है…
मित्रों अँधेरे में कोई जान नहीं है
मानव और सभ्य समाज की
अँधेरे में कोई पहचान नहीं है…..
अँधेरे में की गई अंधेरगर्दी…!
कभी नहीं देती समाज में हमदर्दी
मित्रों अँधेरा तो……
डर है,भय है और पलायन है
फिर भी हकीकत देखो….!
जमाने के वर्तमान दौर में
साम्राज्य अँधेरे का खूब कायम है
प्रतियोगिता-प्रतिस्पर्धा और
विकास की अन्धी दौड़ में,
उजाले का स्थान आज दोयम है..
उजाले का स्थान आज दोयम है..
रचनाकार….जितेन्द्र कुमार दुबे–अपर पुलिस अधीक्षक-जनपद–कासगंज