14.2 C
New York
Saturday, Apr 27, 2024
Star Media News
Breaking News
Author

गाँव-देश और मँगनी प्रथा…

गाँव-देश और मँगनी प्रथा..

अमीरी रही हो या गरीबी….!
हमारे गाँव-देश की व्यवस्था में,
सामाजिक सम्बन्धों की
रीढ़ रही है…..मँगनी प्रथा….!
चूल्हे के लिए आग हो,
बाल-गोपाल के लिए दूध -मक्खन
खेत-खलिहान के लिए हल-बैल,
समय-समय पर चकरी-जाता,
चौकी-बेलन,ओखल-मूसल और
यहाँ तक कि…..
कथरी सिलने वाली सुई भी,
मँगनी माँगी जाती थी
शादी-विवाह के अवसर पर,
आँगन के लिए हरीश-जुआठ,
बाँस भी जरूरत के हिसाब से
माँग ही लिए जाते थे….
शुभ कर्मों में आम की लकड़ी
मोहल्ले वालों से धान….और…
सुरती-बीड़ी,सुपारी,सरौता-पान
बेहिचक माँगे जाते थे….
सुख-दुख में गद्दा,रजाई तकिया,
बेना,पंखा साथ में चारपाई भी…
बायन-पाहुर के लिए
झपोली-कार्टून,थाल-परात तक
मँगनी माँग लिए जाते थे…..
उस समय मित्रों…..!
इस मँगनी व्यवस्था में थी
मजबूत सोशल बॉन्डिंग….
जो व्यक्ति के मन-मस्तिष्क के
आँकलन का स्रोत थी,
मनबहलाव व परधानी के
चुनाव का संकेत-प्रचार भी थी….
स्नेह,दुलार,मनमुटाव और दूरी
मापने का पैमाना भी थी……
मित्रों…. अब तो यह सब…
भूली-बिसरी यादें हैं….
कोने वाली आलमारी में रखी
धूल भरी किताबें हैं…..
विकास की नई परिभाषा ने…..!
या फिर यूँ कहें..धन की गर्मी और
मन की गर्मी….दोनों ने….!
मँगनी वाली व्यवस्था को
एकदम ही भुला दिया है….
अमीरी-गरीबी की खाई को
कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया है…..
हमारे गाँव-देश का….
मन-मस्तिष्क ही बदल दिया है…
क्या बताऊँ मित्रों..?..आज भी…
उन दिनों की व्यवस्थाएं
बहुत याद आती हैं…..!
आप कुछ भी कहें …..पर…..
यह सच है कि…..
पुरानी व्यवस्थाएं और मान्यताएं
आज भी समाज के लिए
एक थाती है….पर अफ़सोस…!
जाने क्यों….?
हमारी आज की पीढ़ी को,
यह बात समझ में नहीं आती है…
जाने क्यों…..?
हमारी आज की पीढ़ी को,
यह बात समझ में नहीं आती है ..

रचनाकार…..जितेन्द्र कुमार दुबे–अपर पुलिस अधीक्षकज-नपद–कासगंज

Related posts

समाजसेवी संतोष दीक्षित के जन्मदिन की जोरदार तैयारी।

cradmin

Blood Donation Camp Organized By A’Kreations Hair & Beyond On World Blood Donor Day

cradmin

“जी साहब” रचनाकार, जितेन्द्र कुमार दुबे- अपर पुलिस अधीक्षक जनपद–कासगंज

cradmin

Leave a Comment